कायस्थ की कहानी
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कायस्थ की कहानी
विश्व कायस्थ संस्थान
महाभारत के महानायक (भीष्म पितामाह) के द्वारा सुनी गई कायस्थ के उद्भव की कथा भीष्म पितामह ने पुलस्त्य मुनि से पूछा के हे महामुनि संसार में कायस्थ नाम से विख्यात मनुष्य किस वंश में उत्पन्न हुये हैं तथा किस वर्ण में कहे जाते हैं इसे में जानना चाहता हूँ पुलस्त्य मुनि ने प्रसन्न होकर गंगा पुत्र भीष्म से कहा - हे गंगेय में कायस्थ की उत्पत्ति की पवित्र कथा का वर्णन आपसे करता हूँ |
- पितामह ब्रम्हा ने जिस तरह पूर्व में इस संसार की कल्पना की है | वही वर्णन में कर रहा हूँ - यह सर्वविदित है की की ब्रम्हा जी ने इस संसार एवं जिव जंतुओं कि रचना की ब्रम्हा जी ने सूर्य के समान अपने तेजस्वी ज्येष्ठ पुत्र को बुलाकर कहा हे सुब्रत तुम यत्न पूर्वक इस जगत की रक्षा करो | आज्ञा देकर स्वयं ब्रम्हा जी ने एकाग्रचित होकर दस हजार सौ वर्ष की समाधि लगाई और अंत में उनके शरीर से बड़ी भुजाओ वाले श्याम वर्ण, कमलवत शंक तुल्य गर्दन, चक्रवत तेजस्वी, अति बुद्धिमान हाथ में कलम-दवात लिये तेजस्वी, अतिसुन्दर विचित्रांग, स्थिर नेत्र वाले, एक पुरुष अव्यक्त जन्मा जो ब्रम्हा के शरीर से उत्पन्न हुआ |
पुनः ब्रम्हा जी ने समाधि छोडकर पूछा हे पुरुषोत्तम हमारे सामने स्थित आप कौन हैं | ब्रम्हा जी का यह वचन सुनकर वह पुरुष बोला हे विधे में आप ही के शरीर से उत्पन्न हुआ हूँ, इसमें किंचित मात्र भी संदेह नहीं है | हे तात अब आप मेरा नाम करण करें और मेरे योग्य कार्य भी कहिये |
भगवान श्री चित्रगुप्त जी स्तुति –
जय चित्रगुप्त यमेश तव!
जय चित्रगुप्त यमेश तव, शरणागतम् शरणागतम्।
जय पूज्यपद पद्मेश तव, शरणागतम् शरणागतम्॥
जय देव देव दयानिधे, जय दीनबन्धु कृपानिधे।
कर्मेश जय धर्मेश तव, शरणागतम् शरणागतम्॥
जय चित्र अवतारी प्रभो, जय लेखनीधारी विभो।
जय श्यामतम, चित्रेश तव, शरणागतम् शरणागतम्॥
पुर्वज व भगवत अंश जय, कास्यथ कुल, अवतंश जय।
जय शक्ति, बुद्धि विशेष तव, शरणागतम् शरणागतम्॥
जय विज्ञ क्षत्रिय धर्म के, ज्ञाता शुभाशुभ कर्म के।
जय शांति न्यायाधीश तव, शरणागतम् शरणागतम्॥
जय दीन अनुरागी हरी, चाहें दया दृष्टि तेरी।
कीजै कृपा करूणेश तव, शरणागतम् शरणागतम्॥
तब नाथ नाम प्रताप से, छुट जायें भव, त्रयताप से।
हो दूर सर्व कलेश तव, शरणागतम् शरणागतम्॥
जय चित्रगुप्त यमेश तव, शरणागतम् शरणागतम्।
जय पूज्य पद पद्येश तव, शरणागतम् शरणागतम्॥